Monika garg

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खता क्या थी मेरी ?

जैसे ही ठाकुर साहब ने उसके जुडे़ हुए हाथ देखे उस को इशारे से अपने पास बुलाया। वो एक क्षण में उनके सामने खड़ी थी। "लाली ये तो मुझे पता चल गया कि तू कोई रुकी हुई आत्मा है मुझ से क्या चाहती है?" लड़की बड़े ही उदास मन से बोली, "मुक्ति" ठाकुर महेन्द्र प्रताप बोले, "अगर तू गनपत की बेटी है तो मुझे बता तेरे साथ क्या हुआ जो तू इस हवेली मे कैद हो कर रह गयी"। लड़की ने ठाकुर की ओर बडे़ ही भोलेपन से देखते हुए कहा," क्या मै आपको ददू बोलूँ।"क्यो नही तू तो मेरी पोती जैसी ही है। "ठाकुर साहब ने बड़े प्यार से उसकी ओर देखा।
              "ददू! बात उन दिनों की है जब बाबा नयी मां लेकर आये थे। मेरी माँ तो भगवान के पास चली गयी थी। नयी मां सारा दिन घर का काम करवाती थी भरपेट खाना भी नहीं देती थी। कभी कभार मेरा मन घर से बाहर जाने का करता तो हमेशा डांट देती थी," हां अब यही काम रह गया तेरे लिए बाहर जाएगी रंगरलिया मनायेगी।" मेरी छोटी बहन रमा जो छोटी मां की बेटी थी वो थोड़ा तेज स्वभाव की थी अगर छोटी मां कही गयी होती तो वो घर से बाहर निकल जाया करती थी मुझे भी कहती, "दीदी चलो बाहर घुमकर आते है।" मैं छोटी मां के डर से मना कर देती थी। इतना कहकर उसकी आँखों में आँसू आगये। ठाकुर महेन्द्र प्रताप उसे पुचकारते हुए बोले, "कोई नहीं लाली अब मैं तेरे साथ हूँ तू मुझे सारी बात बता दियो मै तेरी मुक्ति का उपाये करूगा। तेरा नाम क्या है बेटी? "लड़की उठते हुए बोली, ददू! मेरा नाम कनक है। अब भोर होने वाली है मैं अब चलती हूं मैं हररोज आप को यहाँ से जाते हुए देखती हूँ मुझे पता है आपके पास आत्माओं को देखने उनसे बात करने और उन्हे उनके धाम पहुंचाने की शक्ति है। इसलिए मैं आपके पास आयी हूं बस अब और नहीं रहना इस घुटन मे मुझे मुक्ति दिला दो ददू। "इतना कहकर वह जोर जोर से रोने लगी। ठाकुर साहब की भी आंखे गीली हो गयी उसकी तडपना देखकर।," मै दिलाऊगा तुझे मुक्ति। मेरा हररोज यहां से जाने का नियम है मैं हर रोज इसी चबुतरे पर बैठकर तेरा दुख सुनुगा। तू मुझे बताना। "इतना कहकर ठाकुर महेन्द्र प्रताप उसके सिर पर हाथ फेरते हुए घर की तरफ चल दिए। 

ठाकुर घर आ गये पर उनका किसी काम में मन ही नहीं लग रहा था ।बार बार कनक का आंखों में पानी लिए हुए वो चेहरा ठाकुर साहब के सामने आ रहा था ।बस कानों में यही आवाज गूंज रही थी ,"दादू मुझे नहीं रहना इस घुटन में , मुझे मुक्ति दिला दो।"ठाकुर आ कर अपने कमरे के आगे बने बरामदे में बैठते थे पर आज मन नहीं कर रहा था सोई पलंग पर जा कर लेट गये ।इतने में भगवान सिंह दुकान जाने से पहले पगालगी करने आया तो अपने पिता को फिर से पलंग पर लेटे देख कर बोला,"कायी बात है पिता जी थेह ठीक से तो हो ना काहल (कल)भी थेह यो टेम बिस्तर मह थे तबीयत ठीक है ना आप री ।कहो तो डाक्टर बुलाऊं।"ठाकुर साहब हंसते हुए बोले ,"ना रे ऐसी कोई बात कोनी मेह तो बिचार कर रहिया था के क्यूं ना आपा गनपत रो हबेली ले ल्या। तू कै कहबै ।"भगवान सिंह आश्चर्य से अपने पिता की ओर देखते हुए बोला,"थेह जानो हो फेर भी ।"ठाकुर साहब ने बडे़ बेटे के आगे अपना मन खोलते हुए कहा ,"तू जाने हैं एक तो भवानी लेने के वास्ते जोर दे रहियो है और एक...." इतना कह कर ठाकुर थोड़ा ठिठक गये।"और एक कै पिताजी?"ठाकुर साहब चारों तरफ नजरें घुमाकर के कोई सुन ना रहा हो धीरे से बोले ,"भगवाने उस घर में एक रुकी हुई आत्मा है जो बार बार मुझे से बात करने आती है । मुक्ति चाहती है वो ।उसे सब पता है कि मेरे पास ऐसी विद्या है ।जब ही मुझ से सम्पर्क साधती है।बेटा मैं तो वचन दे आया उसे मुक्ति दिलाने का अब मकान खरीदने के बाद ही ये काम हो सकता है।"भगवान सिंह बेमन से बोला,"पिता जी थेह मन बना ही लियो है तो मैं कुछ ना कह सकूं।आप की अगर मर्जी है तो वो बात टाली जावे है कै।आज ही डीलर हूं बात करु हूं। अच्छा अब मैं चालु हूं।"इतना कह कर भगवान सिंह दुकान पर चला गया।अब ठाकुर महेन्द्र प्रताप को एक एक पल भारी हो गया कब रात होये और कब वो बेचारी कनक की आपबीती सुने।
     ठीक बारह बजे रात को ठाकुर साहब की आंख खुल गयी। फटाफट चिड़िया के लिए दाना ले और कुत्तों की रोटी ले कर ठाकुर गनपत की हवेली की ओर चल दिए मन ही मन सोच रहे थे कि आज मैं कनक बेटी को कष्ट नहीं दूंगा मैं भोर होने तक उस की आपबीती सुनु गा।ये सोचते सोचते ठाकुर साहब के कदम तेजी से उठने लगे गनपत की हवेली की ओर...(क्रमश)

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8 Comments

Seema Priyadarshini sahay

17-Feb-2022 06:05 PM

बहुत रोचक

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Monika garg

17-Feb-2022 08:46 PM

धन्यवाद

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Inayat

05-Feb-2022 04:35 PM

Very good story..

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Monika garg

12-Feb-2022 05:03 PM

धन्यवाद

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Rohan Nanda

03-Feb-2022 11:43 PM

Very good story h

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Monika garg

12-Feb-2022 05:02 PM

धन्यवाद

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